Lithium-ion Battery : सड़क परिवहन और राजमार्ग मंत्री नितिन गडकरी ने बुधवार को राज्यसभा को बताया कि सरकार पर्यावरण पर लिथियम-आयन बैटरी कचरे को डंप करने के दुष्प्रभावों के बारे में किसी भी रिपोर्ट को गंभीरता से लेगी। और विभिन्न अपशिष्ट पदार्थों की रिसाइकलिंग के लिए सर्कुलर अर्थव्यवस्था को बढ़ावा दे रही है।
Lithium-ion Battery Dumping
लिथियम-आयन बैटरी अपशिष्ट डंपिंग और इस भंडारण प्रणाली की मैन्युफेक्चरिंग यूनिट्स में श्रमिकों पर बुरे प्रभाव का मुद्दा कांग्रेस सदस्य रंजीत रंजन ने राज्यसभा में प्रश्नकाल के दौरान उठाया था। पूरक प्रश्न में रंजन ने कहा कि एक शोध रिपोर्ट है जो लिथियम-आयन बैटरी के निर्माण की प्रक्रिया में शामिल श्रमिकों के स्वास्थ्य पर पड़ने वाले बुरे प्रभाव को उजागर करती है।
- उन्होंने कहा कि रिपोर्ट से यह भी पता चलता है कि लाइफ साइकल (जीवन चक्र) पूरा करने के बाद इन बैटरियों को डंप करने से पर्यावरण पर असर पड़ता है। और पृथ्वी जहरीली हो जाती है और मिट्टी की उर्वरता (उपजाउपन) खराब हो जाती है।
- जवाब में, गडकरी ने कहा, “हमारे पास ऐसी कोई रिपोर्ट या निष्कर्ष नहीं है। अगर इस तरह की कोई भी बात हमारे सामने आती है तो हम इस पर विचार करेंगे। हम इस मुद्दे को गंभीरता से लेंगे और लिथियम-आयन बैटरी कचरे की रिसाइकलिंग पर काम करेंगे।”
- यह भविष्य की तकनीक है। उन्होंने कहा, हमारी सरकार भविष्य की तकनीक, दृष्टिकोण और योजना के साथ इस दिशा में काम कर रही है।
- राजमार्ग मंत्री ने कहा कि भारत अगले पांच वर्षों में इलेक्ट्रिक कारों, बसों, ट्रकों का निर्यात करने वाला अग्रणी देश बन जाएगा।
- उन्होंने सदन को यह भी बताया कि केंद्रीय वित्त मंत्री ने अपने बजट भाषण में सर्कुलर इकोनॉमी की बात की है। और इसके तहत हम कार स्क्रैपिंग, रबर को बिटुमिन के साथ रिसाइकल करते हैं और प्लास्टिक का इस्तेमाल सड़क निर्माण में किया जा रहा है।
- उन्होंने सदन को बताया कि सरकार ने इकोलॉजी (पारिस्थितिकी) और पर्यावरण की रक्षा के लिए सड़क निर्माण में नगरपालिका के ठोस कचरे का इस्तेमाल किया है।
- उन्होंने कहा, “हमारा देश सालाना 16 लाख करोड़ रुपये से ज्यादा मूल्य का जीवाश्म ईंधन (फॉसिल फ्यूल) आयात करता है। और दिल्लीवासियों को यह समझाने की कोई जरूरत नहीं है कि यहां प्रदूषण का स्तर क्या है।”
- लिथियम बैटरी के बारे में बताते हुए उन्होंने कहा कि इसकी चार केमिस्ट्री हैं। और एल्युमीनियम स्टील आयन बैटरी और एल्युमीनियम एयर टेक्नोलॉजी पर काम चल रहा है।
- उन्होंने बताया कि जहां पेट्रोल वाहन को चलाने की लागत 100 रुपये से 110 है, वहीं इलेक्ट्रिक वाहनों की लागत सिर्फ 10 रुपये है।
- उन्होंने कहा कि लिथियम-आयन बैटरी की लागत जो 150 अमेरिकी डॉलर प्रति किलोवाट घंटा थी, अब घटकर 115 अमेरिकी डॉलर प्रति किलोवाट घंटा हो गई है।
- उनका मानना था कि वर्तमान में पेट्रोल या डीजल वाहनों की तुलना में इलेक्ट्रिक वाहन की लागत ज्यादा है।
“इलेक्ट्रिक वाहन बहुत लोकप्रिय हैं। एकमात्र समस्या यह है कि पेट्रोल/डीजल वाहन और ई-वाहन के बीच लागत का अंतर है… ई-वाहन महंगी है और यह बिक्री पर निर्भर करता है। जब बिक्री बढ़ेगी, तो मुझे लगता है कि, यह मेरा अनुमान है, मैं आपको यह वादा नहीं कर रहा हूं कि, डेढ़ साल के भीतर पेट्रोल, डीजल और ई-वाहन की कीमत एक समान हो जाएगी।”
उन्होंने सदन को आगे बताया कि लिथियम-आयन का छठा सबसे बड़ा भंडार जम्मू-कश्मीर में पाया गया है। और भारत 1,200 टन लिथियम-आयन का आयात करता है।
Lithium-ion battery कैसे करती है काम, आखिर क्यों होती है रिचार्जेबल, समझिए पूरा फंडा
लीथियम आयन बैटरी (Lithium-ion battery) एक प्रकार की रिचार्जेबल बैटरी है जिसका इस्तेमाल अलग-अलग डिवाइस जैसे मोबाइल फोन, लैपटॉप, इलेक्ट्रिक व्हीकल्स, और बैटरी से चलने वाले में किया जाता है। यह बैटरी लीथियम आयन का इस्तेमाल करती है जो बैटरी में आयनिक रूप में स्थित होता है और इलेक्ट्रॉलाइट के रूप में काम करता है। आपने क्या कभी सोचा है कि आखिर यह बैटरी कैसे काम करती है और क्यों दोबारा चार्ज हो जाती है? अगर नहीं तो आइए समझते हैं।
Lithium-ion battery में होते हैं दो इलेक्ट्रोड
बैटरी में दो प्रमुख इलेक्ट्रोड होते हैं – एक पॉजिटिव इलेक्ट्रोड और एक नेगेटिव इलेक्ट्रोड। पॉजिटिव इलेक्ट्रोड में लीथियम कंपाउंड्स (जैसे लीथियम कोबाल्ट ऑक्साइड) होते हैं जो इलेक्ट्रॉन असेम्बल करते हैं। इसी तरह, नेगेटिव इलेक्ट्रोड में एक एनोडिक मीन एस्टिमेट होता है, जिसमें लीथियम के आयन होते हैं। ये आयन पॉजिटिव इलेक्ट्रोड के इलेक्ट्रॉनिक करंट को खींचते हैं और उन्हें उपयुक्त केमिकल प्रोग्राम पर ले जाते हैं।
बैटरी क्यों होती है रिचार्जेबल
जब बैटरी (Lithium-ion battery) को इस्तेमाल करते समय चालू किया जाता है, तो यह आयन इलेक्ट्रिक करंट को पॉजिटिव इलेक्ट्रोड से नेगेटिव इलेक्ट्रोड की ओर ले जाते हैं। इस प्रक्रिया में आयन इलेक्ट्रिक करंट पॉजिटिव इलेक्ट्रोड पर उपयुक्त केमिकल प्रोसेस को शुरू करते हैं और यहां अपने इलेक्ट्रॉनिक डिवाइस की ऊर्जा को रिलीज करते हैं। इस प्रक्रिया के दौरान लीथियम आयन नेगेटिव इलेक्ट्रोड पर अवशोषित होते हैं। जब बैटरी खत्म हो जाती है, तो इसे चार्ज किया जाता है।
इस प्रक्रिया में चार्जर इलेक्ट्रिक करंट को पॉजिटिव इलेक्ट्रोड पर दोबारा स्थापित करता है, जिससे लीथियम आयन फिर जरूरत के हिसाब में भर जाते हैं। यह प्रक्रिया बार-बार दोहराई जा सकती है और इसलिए लीथियम आयन बैटरी (Lithium-ion battery) रिचार्जेबल होती है।
लीथियम आयन बैटरी के फायदे
लीथियम आयन बैटरी (Lithium-ion battery) का मुख्य फायदा यह है कि वे ज्यादा कम्यूनिकेटिव होती हैं और बार-बार चार्ज और डिस्चार्ज करने के बावजूद ऊर्जा की गुणवत्ता को कायम रखती हैं। इसके अलावा, ये बैटरी स्थानीय प्रदूषण को कम करने में मदद करती हैं क्योंकि वे इलेक्ट्रिक व्हीकल्स और पोर्टेबल डिवाइस के लिए वैकल्पिक ऑटोमेटिक सोर्स के रूप में इस्तेमाल की जा सकती हैं।
लिथियम क्यों है इतना कीमती, दुनिया में कहां है सबसे बड़ा भंडार? भारत के EV इंडस्ट्री के लिए क्यों जरूरी है ये खजाना
इलेक्ट्रिक वाहनों के निर्माण में एक बड़ा हिस्सा बैटरी की लागत के तौर पर खर्च होता है और ख़ास कर EV के लिए लिथियम-ऑयन बैटरियों का इस्तेमाल इस समय खूब चलन में है। लिथियम एक रासायनिक तत्व है जिसका प्रतीक (Li) और परमाणु संख्या 3 है। चांदी जैसा नरम और सफेद ये क्षार धातु मानक परिस्थितियों में सबसे कम सघन मेटल और सबसे कम घना ठोस तत्व होता है। बीते दिनों भारत में जम्मू कश्मीर लिथियम का एक बड़ा भंडार मिला था जिसको लेकर दावा किया जा रहा है कि ये भारत में लिथियम की मांग को पूरा करने में काफी मददगार साबित हो सकता है। ऐसे में इलेक्ट्रिक व्हीकल इंडस्ट्री को भी इस नई खोज से काफी उम्मीदे हैं।
भारत में लिथियम भंडार
इस साल की शुरुआत में भारत में पहली बार जम्मू-कश्मीर के रियासी जिले के सलाल-हैमाना क्षेत्र में फरवरी महीने में लिथियम का बड़ा भंडार मिला था। लिथियम के लिए अभी तक भारत चीन पर निर्भर है। अब माना जा रहा है कि चीन का एकाधिकार खत्म होगा। GSI ने 2016-17 से 2020-21 के बीच बिहार, छत्तीसगढ़, हिमाचल प्रदेश, जम्मू और कश्मीर, झारखंड, मध्य प्रदेश, मेघालय, कर्नाटक और राजस्थान में लिथियम और संबंधित तत्वों पर 14 परियोजनाओं को अंजाम दिया।
2021-22 के दौरान, जीएसआई ने अरुणाचल प्रदेश, आंध्र प्रदेश, छत्तीसगढ़, जम्मू और कश्मीर और राजस्थान में लिथियम और संबंधित खनिजों पर 5 परियोजनाएं शुरू की हैं। जिसका नतीजा रहा कि जम्मू कश्मीर में बड़ा लिथियम रिजर्व मिला है। हाल ही में मंत्रालय ने जम्मू- कश्मीर में 5.9 मिलियन टन लिथियम रिजर्व की पुष्टि की है।
लिथियम के लिए अब तक भारत पूरी तरह से विदेश से आयात पर निर्भर रहा है। JMK रिसर्च और द इंस्टीट्यूट फॉर एनर्जी इकोनॉमिक्स एंड फाइनेंशियल की एक रिपोर्ट के अनुसार भारत का वार्षिक लिथियम-आयन बैटरी बाजार वित्तीय वर्ष 2021 में 2.6 GWh से वित्तीय वर्ष-30 तक 116 GWh तक बढ़ने की उम्मीद है, जिसमें इलेक्ट्रिक वाहनों की हिस्सेदारी पूरे मार्केट में तकरीबन 90 प्रतिशत होगी।
इलेक्ट्रिक वाहनों में लिथियम की उपयोगिता
बाजार में विभिन्न प्रकार की बैटरियां उपलब्ध हैं, जिसमें लिथियम-आयन बैटरी, सॉलिड स्टेट बैटरी, निकेल-मेटल हाइड्राइड बैटरी, लेड-एसिड बैटरी और अल्ट्राकैपेसिटर शामिल हैं। हालांकि, लिथियम-आयन बैटरियां सबसे ज्यादा चलन में है क्योंकि इन्हें सबसे बेहतर माना जाता है। लिथियम-आयन बैटरी वर्तमान में अधिकांश इलेक्ट्रिक वाहनों में उपयोग की जाती हैं क्योंकि उनकी प्रति यूनिट हाई एनर्जी द्रव्यमान अन्य विद्युत ऊर्जा भंडारण प्रणालियों के सापेक्ष होती है।
लिथियम-आयन बैटरी हाई पावर-टू-रेशियो, हाई टेंप्रेचर में भी बेहतर परफॉर्मेंस वाली गुणवत्ता और लो सेल्फ डिस्चार्ज के चलते इलेक्ट्रिक वाहनों के लिए सबसे बेहतर विकल्प मानी जाती हैं। लिथियम-आयन बैटरी के अधिकांश कंपोनेंट को रिसाइकिल किया जा सकता है। ये न केवल लागत को कम करता है बल्कि बेहतर लाइफ और हाई टेंप्रेचर जैसी चिंताओं से भी मुक्ति देता है।
सस्ते होंगे इलेक्ट्रिक वाहन
इसमें कोई दो राय नहीं है कि भारत में लिथियम भंडार मिलने से सबसे बड़ा फायदा इलेक्ट्रिक व्हीकल इंडस्ट्री को होगा, इससे इलेक्ट्रिक वाहनों की कॉस्ट कम होगी, बैटरी निर्माण में लिथियम की कॉस्टिंग तकरीबन 15 प्रतिशत होती है। ऐसे में यदि भारत लिथियम के की आपूर्ति के लिए विदेशों से आयात पर निर्भरता कम करता है और यहां के लिथियम रिजर्व से आपूर्ति की जाती है तो इसका असर इलेक्ट्रिक वाहनों की कीमत पर भी पड़ेगा। आमतौर पर किसी भी इलेक्ट्रिक वाहन की कुल कीमत में अकेले बैटरी की कॉस्ट तकरीबन 40 से 45 प्रतिशत तक होती है।
अगर हम भारतीय रिजर्व से लिथियम का इस्तेमाल करते हैं तो बैटरी की लागत में 5 प्रतिशत की कमी आ सकती है। हाल ही में जम्मू और कश्मीर में लिथियम रिजर्व पाया गया है। इलेक्ट्रिक व्हीकल इंडस्ट्री के लिए ये एक बेहतर संकेत है. देश अगले 4 वर्षों में इलेक्ट्रिक वाहनों लिए तीसरा सबसे बड़ा बाजार बनने के लिए अच्छी स्थिति में है। हालांकि लिथियम का रिजर्व मिलना और फिर उसे बैटरी सेल के तौर पर विकसित करना ये एक लंबी प्रक्रिया होती है और इस दौरान इसे कई चरणों से होकर गुजरना पड़ता है।
लिथियम क्यों है इतना कीमती
लिथियम दुनिया की सबसे नर्म और हल्की धातु में से एक है। आसान भाषा में समझें तो ये इतना नर्म होता है कि इसे आसानी चाकू से काटा जा सकता है और ये इतना हल्का होता है कि ये आसानी से पानी पर तैर भी सकता है। इसकी खासियत ये है कि, यह रासायनिक ऊर्जा को संग्रहीत करता है और इसे विद्युत ऊर्जा में परिवर्तित करता है। लिथियम आज घर में हर चार्जेबल इलेक्ट्रॉनिक और बैटरी से चलने वाले गैजेट में मौजूद है। इसी वजह से दुनिया भर में लिथियम की जबरदस्त डिमांड है।
दुनिया भर में भारी मांग के कारण इसे व्हाइट गोल्ड भी कहा जाता है। ग्लोबल मार्केट में एक टन लीथियम की कीमत करीब 57.36 लाख रुपये है। विश्व बैंक की रिपोर्ट के अनुसार, वर्ष 2050 तक लिथियम की वैश्विक मांग में 500 प्रतिशत की वृद्धि होगी। इस लिहाज से भारत में लिथियम का अपार भण्डार मिलना देश की अर्थव्यवस्था के लिए भी अच्छा संकेत है।
इन देशों में है लिथियम का सबसे बड़ा भंडार
लिथियम को लेकर सबसे पहले एक बात ये समझना जरूरी है कि, कौन से देशों में लिथियम का सबसे बड़ा भंडार है और कौन सा देश ज्यादा लिथियम का उत्पादन करता है। प्रमुख लिथियम उत्पादक देश निश्चित रूप से बड़ी संख्या में लिथियम कंपनियों का घर हैं। दुनिया के कई टॉप लिथियम उत्पादक भी बड़ा भंडार रखते हैं, और उनके रिजर्व से अंदाजा लगाया जा सकता है कि उन देशों को भविष्य में कितना विकास करना है।
21 मिलियन टन के साथ दुनिया का सबसे बड़ा लिथियम भंडार वर्तमान में बोलिविया देश में है। इसके बाद अर्जेंटीना, चिली और अमेरिका में भी बड़े भंडार हैं। चीन के पास महज 5.1 मिलियन टन लिथियम का भंडार है, बावजूद इसके चीन वैश्विक बाजार में एकाधिकार बनाए हुए है। USA जियोलॉजिकल सर्वे के अनुसार दुनिया के बड़े लिथियम रिजर्व इस प्रकार हैं।
इन देशों में है बड़े लिथियम रिजर्व
क्रम संख्या | देश | भण्डारण |
1 | बोलीविया | 21 मिलियन टन |
2 | अर्जेंटीना | 20 मिलियन टन |
3 | संयुक्त राज्य अमेरिका | 12 मिलियन टन |
4 | चिली | 11 मिलियन टन |
5 | ऑस्ट्रेलिया | 7.9 मिलियन टन |
6 | चीन | 6.8 मिलियन टन |
7 | जर्मनी | 3.2 मिलियन टन |
8 | कांगो (किंशासा) | 3 मिलियन टन |
9 | कनाडा | 2.9 मिलियन टन |
10 | मैक्सिको | 1.7 मिलियन टन |
भारत को भी अपने कुल लिथियम आयात का 53.76 फीसदी हिस्सा चीन से खरीदना पड़ता है। वर्ष 2020-21 में भारत ने 6,000 करोड़ रुपये से अधिक मूल्य का लिथियम आयात किया था और इसमें से 3,500 करोड़ रुपये से अधिक मूल्य का लिथियम चीन से खरीदा गया था। ऐसे में जानकारों का मानना है कि राजस्थान में पाए जाने वाले लिथियम के भंडार इतने अधिक हैं, जिससे चीन का एकाधिकार पूरी तरह समाप्त हो सकता है और देश हरित ऊर्जा के मामले में आत्मनिर्भर बन सकेगा।
क्या राजस्थान में मिला है लिथियम भंडार?
बता दें कि राजस्थान में भी लिथियम भंडार मिलने की ख़बरें आई थी और ये कहा जा रहा था कि, ये रिजर्व भारत में लिथियम की आपूर्ति को तकरीबन 80 प्रतिशत तक पूरा कर सकता है। हालांकि इस रिपोर्ट के मीडिया में आने के बाद जियोलॉजिकल सर्वे ऑफ इंडिया (GSI) ने इसे ‘बेसलेस’ यानी कि आधारहीन करार दिया है। खबर आने के बाद राजस्थान के मंत्री प्रमोद भाया ने भी कहा था कि ” नागौर की डेगाना तहसील में जीएसआई द्वारा किए गए सर्वेक्षण नै यह स्पष्ट कर दिया है कि यहां पर लिथियम का प्रचुर मात्रा में भंडार है, जो जम्मू और कश्मीर से अधिक है।